"जब तक 'मैं' था, तब तक 'तू' नहीं, अब 'तू' है, तो 'मैं' नहीं।"
किसी भी महान इमारत की मजबूती उसकी नींव में छिपी होती है। श्री बजरंग बाला जी दरबार की वह नींव हैं—श्री कुलवंत सिंह भट्टी जी।
कल्पना कीजिए एक ऐसे व्यक्ति की, जिसने जीवन के 53 वर्ष हनुमान जी के किरदार को जीते हुए बिता दिए। यह केवल रामलीला का अभिनय नहीं था, यह एक 'आवाह्न' था। उनकी निस्वार्थ भक्ति ही वह पूंजी बनी जिससे आज यह दरबार खड़ा है। उन्होंने अपने बच्चों को धन की नहीं, बल्कि 'सेवा और समर्पण' की वसीयत दी।
यह कहानी है एक होनहार युवा 'सर्बजीत सिंह' की। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा, संगीत और समाजशास्त्र का ज्ञान, और 28 देशों की यात्रा। सब कुछ था—नाम, शोहरत, पैसा। लेकिन मन में एक गहरा खालीपन था।
"जब जीवन में कठिन समय आया और तार्किक बुद्धि ने जवाब दे दिया, तब 'समर्पण' का जन्म हुआ। टूटकर बिखर चुके सर्बजीत सिंह ने हनुमान जी के चरणों में खुद को सौंप दिया। उसी क्षण, 'सर्बजीत' मिट गया और 'बजरंग दास' का जन्म हुआ।"
'बजरंग दास' बनने के बाद, उन्हें भीतर से स्पष्ट आदेश मिला—
"अब समय आ गया है। इस शक्ति को अपने तक सीमित मत रख। समाज पीड़ा में है, उन्हें राम नाम का मार्ग दिखा।"
आज श्री बजरंग बाला जी दरबार केवल ईंट-पत्थर का भवन नहीं, बल्कि एक 'जाग्रत शक्ति-पुंज' है। यहाँ चमत्कार दिखाए नहीं जाते, महसूस कराए जाते हैं।
दरबार की कुछ अनमोल झलकियाँ
* और तस्वीरें जल्द ही अपडेट की जाएंगी।